घनघोर घटा छाई,
बारिश की बूंदें लाई,
धरा ताप भूल गई, देखे आसमान ये।
घुमड़-घुमड़ कर,
गगन में नाच कर,
चमक गरज चले,आए मेहमान ये।
नदी-नाले भरे जल,
किसान चलावे हल,
फसलें हो हरा-भरा, उससे अंजान ये।
किस्मत की बात होती,
कुछ की अँखियाँ रोती,
श्याम वर्ण छवि पाया,मिला पहचान ये।
एस.के.पूनम(स.शि.)फुलवारी शरीफ,पटना।
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