प्रभाती पुष्प
किसान हुआ लाचार
रूप घनाक्षरी छंद
फसलों की उपज का
मिलता नहीं है भाव,
एक किनारे में खड़ी, डूब रही अब नाव।
केवल खेती के बल
चले नहीं परिवार,
पेट पालने के लिए, है ढूँढ रहा आधार।
खेती में है दम नहीं
किसान हुआ लाचार,
शिक्षा-शादी पर पड़ी, है महंगाई की मार।
उत्तम खेती ना रही
बढ़ियाँ हुआ व्यापार,
सबसे अच्छी नौकरी, नगद का कारोबार।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
0 Likes