छंद – कुंडल
मात्रा — 22
वर्ण —- 14
यति – 12 , 10
अंत — 2 ,2
2121 2121 , 2121 22
रोग हैं दहेज एक , जान लो सभी ये ।
दोषपूर्ण चीज मान , छोड़ दो अभी से ।।
रो रहा पिता हरेक , आज भी यहाँ है ।
दीन ही रहा सदैव , शेर सा कहाँ है ।।
देख लो हजार लाख , बेटियाँ जली हैं ।
ये बुरी प्रथा विचित्र , आज भी पली हैं ।।
हो रहे तबाह लोग , ज्ञान ये किसे है ।
क्यों नहीं समाज आज , भूलता इसे है ।।
बेच डालते शरीर , ये पिता अभी भी ।
बोझ ही रही सदैव , बेटियाँ सभी की ।।
है प्रथा बड़ी अजीब , लोग मानते हैं ।
आज भी इसे गरीब , क्यों न छोड़ते हैं ।।
छोड़ दे इसे समाज , तो सुखी रहेगा ।
ये परंपरा विशेष , को नहीं सहेगा ।।
एक रोशनी नवीन , फैल ये कहेगा ।
प्यार की सुगंध देख , रोज ही बहेगा ।।
सुधीर कुमार , मध्य विद्यालय शीशागाछी , प्रखंड टेढ़ागाछ , जिला किशनगंज , बिहार