भक्तों की पुकार सुन
धरा-धाम पर आए,
देवकी के पुत्र बन मेरे कृष्ण कन्हैया।
दधी भी खिलाती रोज,
लोरियाँ सुनती कभी,
पालना झूलती तुझे, नित्य यशोदा मैया।
यमुना के तट पर,
कभी पनघट पर,
गोपियों को छेड़े रोज, वो बंसी के बजैया।
मुरली की तान छेड़,
निशदिन वृंदावन,
ग्वाल बाल संग मिल चराते थे गईया।
गोपियों के घर जाते,
उनके माखन खाते,
प्रेम के पाले में पड़, तुम रास रचैया।
कंस का उधार किया,
पूतना को तार दिया,
जमुना को स्वच्छ किया, हे! नाग के नथैया।
तेरे जैसे मांझी बिना
नैया डोले डगमग,
मझधार पार करो, तूं बनके खेवैया।
एक बार फिर आओ,
गीता ज्ञान दोहराओ,
विनती है बार-बार बलदाऊ के भैया।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
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