कैकेई का त्याग- विधाता छंद गीत
जगत कल्याण के कारण, किया विष पान त्रिपुरारी।
पुनः दुनिया बचाने को, किया है त्याग निज नारी।।
निभायी राष्ट्र से नाता, लुटायी स्वप्न थी सारी।
युगों तक भी न मिट पायी, कलंकित जिंदगी धारी।।
भलाई जान कर जग का, लिया विपदा सदा सारी।
पुनः दुनिया बचाने को, किया है त्याग निज नारी।।०१।।
जिया नि:स्वार्थ जीवन जो, लिया वरदान दो अपनी।
करे प्रस्थान प्रभु वन को, विरह स्वीकार ली जननी।।
कलेजा भेद कर अपनी, सहज संसार सुख वारी।
पुनः दुनिया बचाने को, किया है त्याग निज नारी।।०२।।
उड़ेगा प्राण ज्यों पति का, अभागन भी वही होगी।
सदा संतान त्यागेगा, उसे धिक्कार भी होगी।।
किया स्वीकार बनना भी, कलंकित एक महतारी।
पुनः दुनिया बचाने को, किया है त्याग निज नारी।।०३।।
नहीं अब नाम कैकेई, युगों से आज तक पायी।
जगत रक्षा जिसे प्यारी, लुटा सर्वस्व हर्षायी।।
यही था राम ने जाना, नमन वह धन्य लाचारी।
पुनः दुनिया बचाने को, किया है त्याग निज नारी।।०४।।
सदा जो दंड है झेली, नहीं चित्कार है लायी।
किया संघर्ष है भारी, गहन वह दंश है पायी।।
नमन “पाठक” करे उनको, वही है मात अवतारी।
पुनः दुनिया बचाने को, किया है त्याग निज नारी।।०५।।
गीतकार:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
