मनहरण घनाक्षरी
(कैसी ये पहेलियाँ)
पतझड़ में पत्तियां,
दूर चली उड़कर,
शांत मौन नभचर,सूनी-सूनी डालियाँ।
कलियाँ भी मुर्झाकर,
बिखरी है सूख कर,
मंडराता मधुकर,अब कहाँ क्यारियाँ।
चमन उजड़ गया,
उड़ गई कोयलिया,
कोयल की कूक सून,ढूंढ़ती सहेलियाँ।
जलद भ्रमण करे,
वर्षा से सागर भरे,
कभी सूखा कभी भूखा,कैसी ये पहेलियाँ।
एस.के.पूनम
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