कौन रुका है? – गिरीन्द्र मोहन झा

Girindra Mohan Jha

कौन रुका है?

प्रश्न है कौन रुका है?

सूर्य, मंदाकिनी का चक्कर लगाते,
अवनि, सूर्य का चक्कर लगाती,
मयंक, पृथ्वी का चक्कर लगाता।

फिर बोलो कौन रुका है?

पौधे निरन्तर बढते जाते,
फलित पुष्पित हो जाते,
प्रकाश-संश्लेषण करके,
प्राणवायु भी हैं दे जाते।

फिर बोलो कौन रुका है।

नदियां पयोधि की ओर,
निरन्तर है चलती जाती,
ईति, भीति को हटाकर,
पथ पर है बढती जाती।

फिर बोलो कौन रुका है?

सागर स्थिर है, तथापि,
उसमें तरंगें है उठती,
बड़वाग्नि कभी-कभी,
सागर में है उठ जाती,
दिन रात्रि की ओर
हैं सतत बढ़ता,
तम प्रकाश की ओर,
है सतत बढ़ता।

फिर बोलो कौन रुका है?

तुम जब चलो तो,
तुम चलते हो,
जब बैठो तो,
तेरा मन चलता है।

फिर बोलो कौन रुका है?

रुको, अवश्य रुको,
मर्यादित, शांत, स्थिर,
गंभीर, सहिष्णु बनो,
पर सतत चलो,
श्रेष्ठ और शुभ,
कुछ न कुछ तुम करते रहो ।

गिरीन्द्र मोहन झा

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