क्या यही है नव वर्ष का त्योहार
जिस त्योहार में मारे जाते हैं
कई निर्दोष जीवों के परिवार,
क्या यही है नव वर्ष का त्योहार ।
नंव वर्ष में सब कपड़े अच्छे पहनते
नव वर्ष के दिन लोग खुशियाँ मनाते,
लेकिन इस दिन मौत पर रोते हैं
मछली , कबूतर ,मुर्गी और बकरी का परिवार
क्या यही है नव वर्ष का त्योहार।
ईश्वर ने खाने के लिए बहुत चीज बनाया
किसी को माँसाहारी किसी को शाकाहारी बनाया,
फिर भी शाकाहारी होते हुए तुम
करते हो निर्दोष प्राणी पर प्रहार ,
क्या यही है नव वर्ष का त्योहार।
हम सभी जीव हैं ईश्वर के संतान
हमारे जीने के लिए है रोटी, कपड़ा और मकान,
फिर क्यूँ लेते हो हम सबकी जान
क्यूँ छीन लिया हमसब का जीने का अधिकार,
क्या यही है नव वर्ष का त्योहार।
जब भी कोई पर्व त्योहार है आता
मनुष्य जाति सब खुशियाँ मनाता,
हम जीवों को बहुत रुलाता
करता हम पर वार ,
क्या यही है नव वर्ष का त्योहार।
जो जीव है तेरे अंदर
वही जीव है मेरे अंदर
फिर भी मुझ पर दया नहीं आती छन में कर देते हो हम सबका गला हलाल
क्या यही है नव वर्ष का त्योहार।
मरते- मरते मैं यही कहूँगा
बहुत हो गया अब न सहूँगा,
तुमसे लूँगा अगले जन्म में मैं बदला
दोनों की वहीं होगी दीदार,
हाँ यही है नव वर्ष का त्योहार।
स्वरचित रचना
नीतू रानी
म0वि0सुरीगाँव बायसी पूणि॔याँ
बिहार।