खामोशी अतीव वाचाल
देख अवनि की गमगीन -सी सूरत
खामोशी आज हुई अतीव वाचाल
धुआँ- धुआँ सी है बनी जिन्दगी
जाने किस घड़ी हो किसका काल
भयाक्रांत मनुज क्षण-क्षण प्रतिक्षण
देख मृत्यु का ऐसा वैभव विकराल
उर-अंतस व्याप्त वेदना अतिरेक
गूँज रहा पीड़ा का अनहद ताल
सबकी राहें हो गई उलझी -उलझी
देख विपदा का यह सुरसा – जाल
किस निष्ठुर समाधि लीन हो भोले
जूझते जगत देखो संकट विशाल ,
धधकती चिताएँ , घाट निशदिन
रोक भी दो अब मौत का जंजाल
सखा – बन्धु सब असहाय खड़े हैं
मन विचलित सबके हाल- बेहाल
श्वास-श्वास सबका हुआ है दुष्कर
रग-रग नि:सृत हताशा का ज्वाल
थमती साँसों संग बुझती हर आसें
किससे करें कोई ये जटिल सवाल
संवेदना की घड़ी संवेदनहीन सारे
हैं सबके सब चल रहे अपनी चाल
मनात्मा संग हुई लुप्त आत्मीयता
मुख- सम्मुख पहने संवेदना खाल
तज छद्म रूप , रख करूण विचार
फिर ना होगा मनुज असह्य मलाल
ले संकल्प एकदूजे संग साथ निभाओ
कर आत्मचिंतन ना द्वेष-विकार पाल
भले चतुर्दिक फैला दुख का बादल
मौन वसुन्धरा का सम्पूर्ण आँचल
पर निश्चित ही होगी एक सुहानी सहर
हो ना अधीर रख हौसला और सम्बल
अर्चना गुप्ता
अररिया, बिहार
म . वि . कुआड़ी