गंगा दशहरा – द्विगुणित सुंदरी छंद गीत
मास ज्येष्ठ दशमी को, गंगा भू पर आना।
आज दशहरा गंगा, जन-जन में कहलाना।।
वंश इक्ष्वाकु जाने, राजा सगर बखाने।
अश्वमेध का घोड़ा, सारे लगे घुमाने।।
इंद्र भयभीत दौड़े, छल से अश्व चुराना।
आज दशहरा गंगा, जन-जन में कहलाना।।०१।।
सभी चहुँओर खोजें, घोड़ा कहीं न पाया।
खोज-खोजकर हारे, लोक पाताल आया।।
जहाँ कपिल तप साधे, छल क्या हुआ न जाना।
आज दशहरा गंगा, जन-जन में कहलाना।।०२।।
भ्रम सुत सगर निहारा, कटु था वचन सुनाया।
क्रोधित होकर ज्यादा, सबको वहाँ जलाया।।
प्रश्न भगीरथ भारी, उनको मोक्ष दिलाना।
आज दशहरा गंगा, जन-जन में कहलाना।।०३।।
किया तपस्या भारी, गंगा खुश हो पाई।
जब भूतल पर आई, मोक्षदायिनी माई।।
शंकर जटा बिखेरें, गंगा जटा बसाना।
आज दशहरा गंगा, जन-जन में कहलाना।।०४।।
हजार साठ सुतों को, मोक्ष तभी मिल पाया।
संग जगत यह सारी, अपना पाप मिटाया।।
माँ की महिमा भारी, दुनिया को बतलाना।
आज दशहरा गंगा, जन-जन में कहलाना।।०५।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज पटना।
संपर्क – 9835232978
