इस बार मौसम का
अलग नजारा दिखे,
दोपहर साँय-साँय, हवा चले कसकर।
धूप की लपट बीच
जलता है अंग-अंग,
तपन चुभाए बिष, नागिन सी डँसकर।
पानी भी पसीना बन
उड़ जाता छन-छन,
बदन को जलाती लू, चलती है दिनभर।
बिना कोई काम पड़े
कभी ना बाहर जाएं,
पूरा दिन गरमी से, रहना है बचकर।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर पटना
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