गीत – ३२
यति – १६,१६
२२२२ २२२२
धरती की चूनर हरियाई ,
रंग बसंती सब पर छाई ।
खेतों में सरसों लहराते ,
तन मन दोनों को महकाते ।
पीले-पीले निज पुष्पों से ,
दिल को आनंदित कर जाते ।।
वातावरण सुगंधित होकर ,
फिर से नई उमंगें लाई ।
रंग बसंती सब पर छाई ।।
बागों में अब कोयल बोले ,
भौंरे कलियों का पट खोले ।
सर सर करके मलयानिल भी ,
देखो कैसे इत उत डोले ।।
सूखी मन की बगिया में फिर ,
खुशियाँ आकर हैं मुस्काई ।
रंग बसंती सब पर छाई ।।
नव पल्लव से तरु आच्छादित ,
हो करते सबको आह्लादित ।
ऐसे मौसम में अनुपम सी ,
होती है शोभा उत्पादित ।।
तुषार आवृत इस दुनिया पर ,
आई है फिर से तरुणाई ।
रंग बसंती सब पर छाई ।।
सुधीर , किशनगंज , बिहार