कत्ह जतन स पाललकै पोसलकैय ।
पढ़ाय लिखाय करि जमीनों गमैलकैय ।।
घर बसाय क बाबू करैय छौ किचकिचो ।
हमरा घरो म रोज कचकचो…।।
हे गे माय जरा बाबू क समझाय दैय ।
बी.पी बढ़लो छौ जरा दवाई खिलाय दैय ।।
उलटा-पुलटा बोली क निकम्मा बताय छौ ।
बाते-बातों म बहु क धमकाय छौ।
थोड़ो दिन रुकी जो करबो चकचको ।।
हमरा घरों म रोज कचकचो …।।
नौकरी नाय होतैय त मजदुरीयो करबैय ।
पाय-पाय जोड़ी-जोड़ी बाबू क चुकैयबैय ।
सभैय स छुपाय करि पतरा दखैयबैय ।।
होम जाप शुद्धि करि लफड़ा हटैयबैय ।
हैय सब सुनाय क”घरो म”कि करवो खटखटो ।।
हमरा घरों म रोज कचकचो…।।
गांव के लोग सब ताना मारैय छैय ।
“पढ़ी-लिखी क आबह करबैयकि”
सब यह कहैय छैय ।।
हे विधाता तोय करलो कि “हिनको सरकार में”
“माथा के बाल सब उड़ी गेलैय ”
नौकरी के इंतज़ार में ।।
महंगाई डायन सब मारी देलकैय
चूल्हा फोड़ो या जातो ।।
हमरा घरों म रोज कचकचो….।।
जयकृष्ण पासवान स०शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा बाराहाट बांका