घर से निकले चूहे राजा,
ले के हाथी और बैंड बाजा।
नई शेरवानी लंबा कुर्ता,
पहन पतलून, टोपी जूता।
घोड़े पर वह हुआ सवार,
चले बाराती भर कर कार।
मन में लड्डू फूट रहे थे,
चूहे मिल मस्ती लूट रहे थे।
संगी – साथी नाच रहे थे।
पंडित पोथी वाच रहे थे।
शुभ मुहूर्त में निकलो भाई,
पंडिताइन ने तिलक लगाई।
इंतजार में थी दुल्हनिया,
ओढ़े चुनरी पांव पैजनिया।
बिल्ली तमाशा देख रही थी।
उसकी आंखें चमक रही थी,
बाहर जब सबने नजरें दौड़ाई,
एक आवाज कानों में आई।
बिल्ली ने जब पूंछ हिलाई,
सबने एक साथ दौड़ लगाई।
शादी हो गई जान पर भारी,
धरी रह गई सारी तैयारी।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
0 Likes