शिक्षा बना बाजारवाद का आलय।
जंगल में खुला ग्लोबल विद्यालय।।
जब जंगल में विद्यालय खुला।
प्रचार प्रसार खुब जमके हुआ।।
उत्साहित थे सभी जानवर।
नाम लिखाये सब जमकर।।
महंगी फीस कॉपी किताबें।
पेंट शर्ट फैंसी जूते टोपी जुराबें।।
बच्चों ने जब पहनी अपनी टाई।
एक साथ शुरू हो गई पढ़ाई।।
सारे बच्चे पूरे मन से पढ़ते।
पर नंबर कम आने से डरते।।
पास परीक्षा देखो-देखो आईं।
बच्चों ने की मिलकर खुब पढ़ाई।।
साल के अंत में हूई परीक्षा।
बिना बच्चों के जाने ईच्छा।।
दौड़ में खरगोश सरपट भागे।
इसमें हो गये वे सबसे आगे।।
जब आई पेड़ पर चढ़ने की बारी।
गिलहरी ने ले ली मेडल सारी।।
उछलने कूदने में बंदर बना हीरो।
हाथी को आया इसमें नंबर जीरो।।
हाथी के पापा ने जब रिजल्ट जाना।
अपने बच्चों को इसमें फैल माना।
हाथी के पापा को गुस्सा आई।
बच्चे को एक-दो चंपत लगाई।।
शोर सुनकर लोमड़ी दौड़ी आई।
हाथी को यह बात समझाई।।
हर बच्चों की है अपनी क्षमता।
यही होती है व्यक्तिगत भिन्नता।।
बच्चों की क्षमता का रखो ध्यान।
दो उसके रूची का मान सम्मान।।
अपनी रुचि के कार्य से आगे बढ़ेंगे।
दुनिया में अपना नाम रोशन करेंगे।।
रचनाकार -रणजीत कुशवाहा
प्राथमिक कन्या विद्यालय लक्ष्मीपुर रोसड़ा समस्तीपुर
(बिहार)