जगन्नाथपुरी रथ-यात्रा- दोहें
उत्कल प्रदेश में चलें, जहाँ ईश का धाम।
शंख- क्षेत्र, श्रीक्षेत्र है, उसी पुरी का नाम।।०१।।
युगल मूर्ति प्रतीक बने, बसे यहाँ अभिराम।
श्री जगन्नाथ पूर्ण हैं, एक कला घनश्याम।।०२।।
गुंडीचा बाड़ी यहाँ, वर्णन करे पुराण।
जहाँ देव शिल्पी किए, प्रतिमा का निर्माण।।०३।।
इंद्रद्युम्न महिप बसे, नीलांचल के पास।
काष्ठ सिंधु में था मिला, लिए रूप हरि खास।।०४।।
प्रतिमा निर्मित अर्ध हीं, अब भी रहा विराज।
विश्वकर्मा किए नहीं, रहा अधूरा काज।।५४।।
शुक्ल द्वितीया आषाढ़ को, रथयात्रा प्रारम्भ।
रथ परंपरा का हुआ, सदी पूर्व आरंभ।।०६।।
भ्रमण द्वारिका का करें, यही सुभद्रा आस।
यात्रा प्रतीक आज है, रखतें हम विश्वास।।०७।।
संग सुभद्रा राजती, साथ सदा बलराम।
नंदीघोष ऊपर से, रथयात्री है श्याम।।०८।।
पावन यात्रा श्याम का, होता है हर वर्ष।
महाप्रसाद ग्रहण करें, पाएँ शुभता हर्ष।।०९।।
स्पर्श रथरज्जु का करे, भव बंधन से मुक्त।
दया भाव अनुनय करे, पाठक लधिमा युक्त।।१०।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश, पालीगंज, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
