जगत कल्याण हेतु-
देवकी के घर आए,
भाद्रपद अर्ध रात्रि, कृष्ण लिए अवतार।
गोपियों के प्रेम वश-
माखन चुराते रोज,
यशोदा के पुत्र बने जग के पालनहार।
लाज को बचाने हेतु-
द्रोपदी की वसन को,
पल में बढ़ाया तूने सुन अबला पुकार।
गज की पुकार सुन-
चले आए दौड़े तुम,
ग्राह जैसे प्राणी का भी कर दिया बेड़ा पार।
महाभारत युद्ध में-
पांडवों का साथ दे के,
दुष्टों का संघार कर हल्का किया मही भार।
पूतना को माता मान-
किया जब क्षीर पान,
नारी का उद्धार कर किया एक उपकार।
कुब्जा एक दुखियारी,
थकी-दीन थी वो नारी,
जीवन सफल हुआ पाया जब तेरा प्यार।
खुद को अजेय मान,
बन गया भगवान,
तूने ही समाप्त किया कंस का वो अत्याचार।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
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