जिन्दगी के दौर में
जब खुद को अकेले पाना
तुम खुद ही, ख़ुद का
सूरज समझ लेना
जो स्याह रात को, समाप्त करता है।
जब मंजिल मुश्किल और दूर लगे
बाधायें अविरल रोके मार्ग
आ जाओ जीवन के प्रथम चरण में
जब तुम छोटे शिशु थे
गिरते उठते, उठते गिरते
रुके नहीं तेरे बढ़ते कदम
गिरते रहे तुम अनगिनत
पर हारी नहीं तुमने हिम्मत।
जब राह में अविरल बाधा हो,
और सामने मार्ग न दिखता हो
बन जाओ,पथ प्रदर्शक तू अपना
और अपना पथ प्रदर्शित करो
मन में जब घोर हताशा हो
आशा नहीं निराश हो
विश्वास कर्म पर तू रखना
तू खुद का आत्मा, और परमात्मा हो।
Sanjay Kumar
DEO Arariya
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