भूलकर भेदभाव,दिल में हो समभाव,
जीभ पर रहे सुधा,प्रेम रस पीजिए।
होठों पर मुस्कान हो,गम का न निशान हो,
मीठे बोल बोलकर, सुख सदा दीजिए।
जीवन में हो उमंग,चाह का रहे तरंग,
न कोई उदास हो,प्रीत रंग रंगिए।
कोई न सवाल कर,न ही तू मलाल कर,
बाँट कर खुशियों को, शांति सदा कीजिए।
त्याग कर दोष दृष्टि, देखो सुंदर है सृष्टि,
विश्व स्नेह भाव सदा,उर में बसाइए।
अश्रु उनके पोछ लो,मुसीबत में साथ दो,
प्रेमधन लुटाकर,सदा मुस्कराइए।
मानव धर्म है यही, जीवन का मर्म यही,
दीन-दुखियों को सदा,गले से लगाइए।
जगत का हो कल्याण,रखे सदा यही ध्यान,
स्वर्ग को उतारकर, जमीं को सजाइए।
कुमकुम कुमारी”काव्याकृति”
शिक्षिका
मध्य विद्यालय बाँक, जमालपुर
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