ज्ञान के आलोक में ,
अज्ञानता को छोड़ दो ।
जलन की ; हठधर्मिता की ,
सारे बंधन तोड़ दो ।
ले पताका असीम व्योम में ,
उड़ चलो तुम शान से ।
पहुँचो बुलंदियों के शिखर पर ,
नित – प्रतिदिन ज्ञान से ।
सुविधा से न सम्पन्नता से ,
न तौलो तुम ईमान को ।
देख लो जो कर्मनिष्ठ है ,
सच्चा समझो उस इंसान को ।
प्रेम की अभिव्यक्ति से ,
काँटे न बिछने दो कभी ।
जीवन जिसे जो मिल गया ,
उसे प्रीति से जोड़ो सभी ।
क्रोध से न बात कर ,
प्रेम से सरसा करो ।
लोभ ; मोह में न पड़ तनिक ,
तुम सुख सहित बरसा करो ।
अन्याय से न अनीति से ,
तुम किसी का धन हरो ।
विकास के मार्ग चलो ,
न सुमार्ग चलने से डरो ।
न पुरुषार्थ से पीछे हटो ,
न असफलता से तुम डरो ।
परोपकार में सदा डटो ,
पर कुपंथ पर न पग धरो ।
विश्वास से ; सत्प्रयास से ,
तुम सदा बढ़ते चलो
न्याय से और प्रेम से ,
नवगीत तुम गढ़ते चलो ।
घृणा भी आए गर कहीं से ,
प्रेम की ओर मोड़ दो ।
गिला भी गर मिले कहीं से ,
तत्क्षण गिला सब छोड़ दो ।
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )