ज्ञान दीप जलता जहाँ – दोहावली
“””””””‘”””‘””””””””””””””””””'””””””””””””””””'”””””””
विद्यालय के छात्र को, नित्य दीजिए ज्ञान।
पावन शुचिता ज्ञान ही, जीवन का उत्थान।।०१।।
विद्यालय के पास से, करें गंदगी दूर।
बच्चों के अंतस सदा, भरें ज्ञान भरपूर।।०२।।
विद्यालय परिसर निकट, हो फूलों का बाग।
मन के सुंदर भाव को, करिए कभी न त्याग।।०३।।
बच्चे माटी की तरह, इन्हें तराशें नित्य।
ज्ञान ज्योति दमके सदा, जैसे नव आदित्य।।०४।।
बच्चे कोमल भाव के, बनें नेह संबंध।
गुरुजन के आशीष से, फैले ज्ञान-सुगंध।।०५।।
समझ परखकर छात्र में, भरिए अभिनव ज्ञान।
सुंदर चिंतन सोच पर, टिकी देश की शान।।०६।।
कोरे कागज की तरह, बच्चों को लें जान।
सौम्य लेखनी से सदा, रहें बढ़ाते मान।।०७।।
ज्ञान दीप जलता जहाँ, होता वहाँ प्रकाश।
पावन ज्ञानालोक से, करिए तम का नाश।।०८।।
विद्या के अवलंब से, करिए मन उजियार।
यह धन सर्व-प्रधान है, देता है सुखसार।।०९।।
देवकांत मिश्र ‘दिव्य’
मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार
