पशु पक्षी सरीसर्प
बैठे हैं दुबक कर,
आज आधा भारत है शीत की आगोश में।
कड़ाके की ठंडक से
हाथ पैर जम रहा,
हिम नर बनाने को प्रकृति है रोश में।
जड़ व चेतन जीव
ठंड से ठिठुर गए,
केवल शीतलहरी दिखती है जोश में।
कभी जाड़ा कभी गर्मी
अतिवृष्टि अनावृष्टि,
जलवायु बदलाव, लीलता आक्रोश में।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
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