तेरा पिता हूँ मैं
तेरी गहरी से गहरी
विपत्तियों की थाह हूँ मैं
ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में
कठिनाईयों के किसी मोड़ में
जब तुम निराशापूर्ण धुप से कुम्हला जाओ
तो बेझिझक मेरे पास आना
तेरे लिए सदैव स्नेह भरा
पीपल सी शीतल छाँह हूँ मैं
क्योंकि तेरा पिता हूँ मैं ।
खुली आँख से तुम सपना देखो
मुसीबतों के आगे माथा मत टेको
चाहे जितना भी कठिन हो राहें
तुम निर्भय होकर बढ़ते जाओ
ठोकर लगे तो भी मत घबराना
तेरे हर जख्म का मरहम ,तेरी मर्ज का दवा हूँ मैं
क्योंकि तेरा पिता हूँ मैं ।
इच्छाएँ अनंत है…
जीवन की राहों में
कहीं पतझड़ तो कहीं बसंत है
खुले गगन में स्वछंद होकर विचरण करो तुम
पर याद रहे –
हमेशा मर्यादापुर्ण आचरण करो तुम
तेरे बनते बिगड़ते भविष्य की परवाह हूँ मैं
क्योंकि तेरा पिता हूँ मैं ।
ध्यान रहे –
असफलता से कभी निराश मत होना
आ जाये बीच में कोई अड़चन
तो हताश मत होना
तू सोच मत, बस बढ़ता जा
तुझे हर मंज़िल तक पहुँचाने वाला
सरल सुगम राह हूँ मैं
क्योंकि तेरा पिता हूँ मैं।
बिनोद कुमार मनिहारी,कटिहार
