त्याग प्रेम का मूल है ,
त्याग प्रेम आधार ।
त्याग से हीं लगता यहां ,
खिला – खिला संसार।
त्याग की मूरत मां मेरी,
देती तन – मन वार।
सबकुछ अर्पण कर पिता ,
पालते हैं परिवार।
त्याग बनाता मनुज को,
मानव से भगवान।
राम ,भरत व लखन पर
बढ़ा अवध का मान।
सभी सुखों का त्याग कर ,
गई सिय पिय के संग।
पतिव्रता का था चढ़ा,
उनपर गहरा रंग।
नींद चैन सुख त्याग कर,
करते काम किसान।
नहीं तो मानव हो जाता,
भोजन को परेशान।
त्याग का सुंदर रूप है ,
नदियां,धरती ,पेड़।
दिनकर से मिट जाता है,
अंधकार का ढेर।
सदाचार का ज्ञान दे,
हरते सकल विकार।
स्वयं कष्ट सह लेते संत
करते जग उपकार।
त्याग से हीं मिलता यहां ,
जीवन में निर्वाण।
त्याग से हीं होता सदा,
मानव का कल्याण।।
स्वरचित:-
मनु कुमारी,प्रखंड शिक्षिका,
मध्य विद्यालय सुरीगांव,बायसी पूर्णियां, बिहार