जीव-जंतु परेशान,
बढ़ रहा तापमान,
अब भी तो चेतो भाई, कहाँ तेरा ध्यान है?
धरती सिमट रही,
आबादी से पट रही,
हरियाली बिना धरा, हो रही विरान है।
गर्मी रोज़ बढ़ रही,
सिर पर चढ़ रही,
मौसम का रुख देख, दुनिया हैरान है।
जलस्तर घट रहा,
जंगल सिमट रहा,
एक दिन वसुंधरा, बनेगी श्मशान है।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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