सुन लो बच्चों! मैं हिन्दी हूँ,
देश-भाल की मैं बिन्दी हूँ ।
जीवन की नव परिभाषा हूँ,
अपनेपन की जिज्ञासा हूँ।
बँगला, गुर्जर या सिन्धी हूँ,
देश-भाल की मैं बिन्दी हूँ।
सहज स्नेह की मैं सर्जन हूँ,
अर्चित नंदित सी अर्जन हूँ।
देख! चतुर्दिक मैं आती हूँ,
कालजयी भाषा लाती हूँ।
चमचम करती सी चिन्दी हूँ,
देश-भाल की मैं बिन्दी हूँ।
प्रेम – सुधा बरसाने वाली,
त्वरित हृदय हरसाने वाली ।
मानवता की माता हूँ मैं,
व्यथा सदय सुखदाता हूँ मैं।
नदियों में मैं कालिन्दी हूँ,
देश-भाल की मैं बिन्दी हूँ।
महादेवी की गान हूँ मैं,
निराला की पहचान हूँ मैं ।
सबको गले लगाती हूँ मैं,
प्रेम पुष्प बरसाती हूँ मैं।
लताओं में पालिंदी हूँ मैं,
देश- भाल की बिन्दी हूँ।
संस्कृति का श्रृंगार बनी हूँ,
देश का कंठहार बनी हूँ।
मैं शिशुओं की तुतली बोली,
प्यारी सखियों की हमजोली।
भाषाओं की खाविंदी हूँ,
देश भाल की बिन्दी हूँ।
सुन लो बच्चों! मैं हिन्दी हूँ,
देश – भाल की बिन्दी हूँ।
स्वरचित:-
मनु रमण “चेतना”
प्रखण्ड शिक्षिका
पूर्णियाँ, बिहार