दोहावली -देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

Devkant

काया वह किस काम की, अगर न हो उपयोग।
श्रम की ज्वाला में तपा, करिए तब उपभोग।।

बुरा कर्म होता बुरा, रहिए इससे दूर।
अपनाकर सत्कर्म को, भरें तोष भरपूर।।

दवा प्रेम की जब पड़े, होता है मन मोर।
लाती सतत् प्रभाव यह, ध्यान लगा इस ओर।।

मन का निश्छल भाव जब, देता नित झकझोर।
तब-तब प्रियतम याद में, घटा दिखी घनघोर।।

उमड़- घुमड़ कर आँख में, बसी घटा की बात।
मन के आँगन मध्य में, हुई घनी बरसात।।

अंतस् कलुष विचार का, करें हमेशा त्याग।
माँ के पावन जाप से, मिट जाएँगे दाग।।

भ्रात-बहन का प्रेम जब, तिल-तिल बढ़ता नित्य।
मन के कोने झाँकता, तब-तब नव आदित्य।।

आशा का दीपक जले, यही नित्य हो चाह।
दीनों के दुख दर्द में, नई बनाएँ राह।।

हिंदी के सम्मान से, बढ़े देश का मान।
मन-वीणा के तार से, करिए नित गुणगान।।

अपने अपने लक्ष्य पर, रखिए दृढ़ विश्वास।
श्रम को जीवन कर वरण, पाएँ मोती पास।।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

0 Likes
Spread the love

Leave a Reply