दीप जलें जब द्वार पर, मिलता नवल प्रकाश।
खुशियाँ अंतस् तब मिलीं, हुआ तिमिर का नाश।।
दीप अवलि में सज उठे, करते तम को नष्ट।
दीन-हीन को देखकर, हरिए उनके कष्ट।।
यह प्रकाश का पर्व है, करता तम का नाश।
अंतर्मन में द्वेष का, नित्य काटिए पाश।।
खील-खिलौने खाइए, करिए संग विचार।
रहे गेह में रौशनी, और हृदय में प्यार।।
मन के मंदिर में बसे, धवल ज्योति अनुराग।
परहित पावन भाव से, खिलता मन का बाग।।
माटी का दीपक जले, पाकर स्नेहिल तेल।
रखें स्वच्छ पर्यावरण, करिए इनसे मेल।।
प्रमुदित होकर दीप जब, लाता नव उजियार।
अंधकार कहता फिरे, अब है मेरी हार।।
आत्म ज्योति ज्ञानाज्य से, करें दीप्तिमय आज।
लेकर नव संकल्प से, रखिए सुखी समाज।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर,
बिहार