धरती माँ की बेहद करुण कहानी,
सुन लो हे मानव! मत करो नादानी।
पेड़ कटे, नदियाँ सूखीं, ज़मीन हुई कम,
हरियाली की आशा — झूठी दलील दिए तुम।।
साँसें बोझिल, वायु भी हुई ग़मगीन,
नीला अम्बर हुआ धीरे-धीरे रंगहीन।
जंगल जलते, पर्वत रोते, वृक्ष कटते,
पक्षी पलायन कर धरती से खोते।।
हे मानव! तूने ही यह रूप संवारा,
फिर क्यों तूने इसका रूप बिगाड़ा?
तेरे कर्मों की ही मिली प्रतिछाया,
पृथ्वी पर संकट गहरा आया।।
अब भी जागो, वक्त यही है,
प्रकृति-रक्षा, धर्म भी सही है।
पेड़ लगाओ, जल को बचाओ,
पृथ्वी पर फिर से प्रेम रचाओ।।
प्लास्टिक त्यागो, सौर अपनाओ,
हर जीवन के साथ निभाओ।
मत करो इसका शोषण अब,
धरती माँ का हो अनुकरण सब।।
चलो मिलें, संकल्प करें हम,
हर दिन को पर्यावरणमय बनाएं।
विश्व पृथ्वी दिवस की जय हो,
धरती माँ सदा सुखदायिनी कहलाए।

सुरेश कुमार गौरव
प्रधानाध्यापक, उ.म.वि. रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)
