नवांकुर पौधा इसके उपर रंग-बिरंगे सुंदर फूल खिले,
बैठे खगों के सुंदर मीठे स्वर वातावरण में मिश्री घोले।
कोंपल से किसलय फिर तरुण अवस्था में मानो बोले,
कुदरत का मानते आभार सदा इस धरा पर खूब डोले।
दिखे स्वर्णमयी आभा सी, आएं इन बहारों में जरा खो लें,
करता हूं मनुहार करें रखवाली, थोडा सरस सलिल पी लें।
रंग-बिरगे फूलों की खूशबू तन-मन के दरवाजे खोले,
तन-मन महकाए नई स्फूर्ति ला मधुरता के बोल बोले।
सूरज की किरणें,हवाएं देती स्फ़ूर्ति और फूलों की महक
हवाओं के बीच डोलते-बोलते-दिखलाते अपनी चहक।
नवांकुर पौधा इसके उपर रंग-बिरंगे सुंदर फ़ूल खिले,
बैठे खगों के सुंदर मीठे स्वर वातावरण में मिश्री घोले।
सुरेश कुमार गौरव,शिक्षक,पटना (बिहार)
स्वरचित और मौलिक
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