नारीत्व का सुख
हर महीने जो आती है रीत।
उसे समझो न कोई बुरी प्रीत।।
चाँद से जुड़ी इसकी चाल।
फिर क्यों बने ये तानो के जाल।।
जिससे जन्म लेता है जहाँन।
उसे क्यों कहे हम पाप के निशान।।
न इसे छुआछूत बनाओ।
न ही इसे बोझ बताओ।।
माहवारी नहीं अभिशाप।
ये तो है नारी का अनुपम ताप।।
सम्मान दो इस प्राकृतिक बातों को।
और तोड़ दो चुप्पी के हर शर्तों को।।
ये नहीं कोई शर्म की बात।
ये है जीवन की शुरुआत!
(शिल्पी कुमारी +2 जूलॉजी अध्यापिका)
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Shilpi Kumari
