विधा: गीत(१६-१४)
आओ स्नेहिल रंग उड़ाओ, पावन होली आई है।
बच्चे बूढ़े नर- नारी पर, कैसी मस्ती छाई है।।
सुंदर है बच्चों की टोली, सबके कर पिचकारी है।
गली- गली में शोर मचा है, होली सबकी प्यारी है।।
अनुपम प्रेमिल भाव सरसता, जनमानस में लाई है।
आओ स्नेहिल रंग ————————।
सुषमा नित वसंत की देखो, कितनी न्यारी लगती है।
खनक मँजीरे की तब देखो, थाप ढोल जब बजती है।।
शिकवे- गिले मिटाकर गा लो, बात यही सरसाई है।
आओ स्नेहिल रंग ——————।
अहं भाव को सदा जलाकर, प्रभु से प्यार बढ़ाना है।
दीन दु:खियों के बालक को, प्रगति पथ पर चढ़ाना है।।
घृणा भाव की जली होलिका, बात यही बतलाई है।
आओ स्नेहिल रंग ————————-।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’, मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार
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