पिता – अवनीश कुमार

Awanish Kumar Avi

पिता

पिता केवल पिता ही नहीं होते,
वे ढहते विश्वास की ढाल होते हैं,
टपकती छत का इंतज़ाम होते हैं,
हमारे स्वप्निल स्वप्न का लौकिक संसार होते हैं,
हमारे निवाले की रोटी-दाल
हमारी देह का वस्त्र,
हमारी मां के सर्वस्व
और हम सबके नींद-चैन होते हैं।

वे धूप में ठंडी छाँव हैं,
वे सर्द रातों में गरम आग हैं,
वे वक़्त की आँधी में अडिग दीवार हैं।

वे अल्पभाषी हैं जरूर
पर उनकी हर ख़ामोशी में ममता की गूँज है।
बिना कहे सबको समझने वाले
देवस्वरूप हैं।

पिता—
जिनके माथे की हर शिकन में
छिपे हैं सालों के संघर्ष।
किंतु
वे हमारे हाथों की लकीरों के नसीब हैं,
हमारी पहली पाठशाला,
हमारा पहला विश्वास हैं।

सचमुच !
पिता केवल एक शब्द नहीं,
एक संपूर्ण जीवन-वृत्त हैं—
त्याग, सुरक्षा, सहारा और संबल
उनकी अद्भुत कृति के अनेकानेक रूप हैं।
उनकी अद्भुत शक्ति के
न दूजे रूप हैं।

लेखन:-
अवनीश कुमार
बिहार शिक्षा सेवा ( शोध व अध्यापन उपसंवर्ग)
व्याख्याता
प्राथमिक शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय विष्णुपुर,बेगूसराय

1 Likes
Spread the love

Leave a Reply