हैं पुरुष विवश कैसे होते ?
जैसे मकड़ा स्वनिर्मित जाल में ।
मानव का यह आधा हिस्सा ,
पड़ जाता भव – जाल में ।
केवल एक पक्ष को लेकर ही ,
साहित्य सृजन भी चलता है ।
द्वेष राग से परिपूरित हो ,
बाबेला अधिक मचाता है ।
नारी की दुश्मन नारी ही ,
पुरुष पर दोषारोपण होता है ।
समग्र झंझावातों में केवल ,
प्रहार पुरुष पर होता है ।
गहराइयों में जाकर देखो हे मानव ,
कौन किसे सताता है ?
आन -बान -शान की कीमत से ,
कौन घायल कर जाता है ?
जीवन मे सच्चाई देखो ,
लो न पक्ष किसी का भाई ।
कहो वही जो उचित बन पड़े ,
जो सबके लिए हो सुखदाई ।
अमरनाथ त्रिवेदी , प्रधानाध्यापक , उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा , प्रखंड बंदरा (मुज़फ़्फ़रपुर )