काग बोलता रहा डाल पर,
क्या लिखा दुनिया के भाल पर?
तेरे अस्तित्व पर मैं टिका हूॅं,
तुझसे बहुत मैं सीखा हूॅं।
विस्मित हूॅं बदलते चाल पर।
कौवा बोल रहा डाल पर।
हक मारी चोरीचपाटी,
दौड़ा मैं हूॅं सागर घाटी।
रो रहा बस एक सवाल पर।
कौवा बोल रहा डाल पर।
“पेजर” सुनने में प्यारा है,
यह जानलेवा अंगारा है।
काँव- काँव होता बवाल पर।
कौवा बोल रहा डाल पर।
मोबाइल पर ऑंख गड़ाए,
बच्चों तुम रहते मुरझाए।
नजर टिकाए विश्वभाल पर।
कौवा बोल रहा डाल पर।
चेतों बच्चों नजर हटाओ,
कबड्डी गोली हाथ लगाओ
“अनजान” रखें कर कपाल पर।
कौवा बोल रहा डाल पर।
शिक्षा देती है यह घटना,
अतिशय से जीवन भर बचना।
चाॅंटा वरना लगे गाल पर।
कौवा बोल रहा डाल पर।
रामपाल प्रसाद सिंह “अनजान”
मध्य विद्यालय दरबे भदौर पंडारक, पटना