प्यासा कौवा – रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’

 

भीषण गर्मी का एक दिन था
सूरज चमक रहा था सिर पर।
गर्म हवा के झोंकों को,
झाँक रही धरती फट-फट कर।।

तभी पेड़ों की एक शाखा पर
कौवा उड़ता-उड़ता आया।
बीती सुबह, आई दोपहर
खाना तलाश न वह कर पाया।।

चिलचिलाती दोपहरी थी
कौवे को लग गई थी प्यास।
बूँद-बूँद पानी की खातिर,
करने लगा वह प्रयास।।

धरती ऊपर उड़ता-उड़ता
कहाँ-कहाँ नहीं वह भागा।
थक हार गया वह पंछी
तभी घड़ा देखकर जागा।।

घड़ा देख नीचे वह आया
पास आकर निज चोंच लगाया।
घड़ा में इतना कम था पानी
चोंच पानी तक पहुंच न पाया।।

प्रसन्न हुआ अति प्यासा कौवा
देखा, बिखड़े पड़े जो कंकड़।
एक-एक को उसने उठाकर
घड़ा में डालने लगा निरंतर।।

कंकड़ गए पानी के अंदर
पानी और थोड़ा ऊपर आया।
थका हुआ कौवा था प्यासा
पर वह बल पूरजोर लगाया।।

कंकड़ पर कंकड़ रख उसने
लेकर आया वहाँ तक पानी।
चोंच बढ़ाकर पानी छू गया
प्यास बुझाई पीकर पानी।।

प्रयासों के बीज से
फल मिलता अनमोल।
कड़ी मेहनत के बल से
बच्चे! अपनी किस्मत खोल।।

रामपाल प्रसाद सिंह’अनजान’
प्रभारी प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दरवेभदौर
ग्राम+पो०+थाना:-भदौर
जिला: पटना, बिहार

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