प्रकृति है जीवन का आधार।
मनुष्य ने किया इससे खिलवाड़।।
गगनचुंबी इमारत की जाल बिछाई।
धरा पर कंक्रीट रुपी जंगल फैलाई।।
पेड़-पौधे की अंधाधुंध कर कटाई।
कृषि योग्य उपजाऊ भूमि घटाई।।
शुद्ध सात्विक भोजन से भागकर।
तामसिक, मांसाहारी भोजन खाई।।
जीव-जंतुओं को मार भगाकर।
अपनी आबादी दिन-रात बढ़ाई।।
बनाये परमाणु, जैविक हथियार।
जो बना है विनाश का आधार।।
मनुष्य अपना सीमा लांघ चुकी हैं।
प्रकृति बदला लेने की ठान चुकी है।
इसलिए प्रकृति कर रही है संहार।
बाढ-सुखाड और कोरोना की मार।।
आओ हम सब पुनः वापस जाये।
भोतिकवादी जीवन को भगायें।।
सब जीवों के प्रति समभाव दिखाये।
सदा जीवन उच्च विचार अपनाये।।
रणजीत कुशवाहा,नगर शिक्षक
प्राथमिक कन्या विद्यालय लक्ष्मीपुर
रोसड़ा ( बिहार)