हरी-भरी यह धरती अपनी, इसको हमें बचाना है।
पेड़ लगाकर, जल बचाकर, हरियाली फैलाना है॥
नदियाँ बहें सदा निर्मल-सी, कलुष नहीं जल करना है।
नीला नभ हो,शुद्ध पवन हो,ऐसा जग हमें गढ़ना है॥
फूल खिलें हर बाग-बगीचे, तितली नाचे गाती हो।
कोयल बोले, हवा महकती, हरियाली लहराती हो॥
पंछी गाएँ मधुर तराने, नभ में उड़ते जाएँ।
ऐसी सुंदर धरती के हम, प्रहरी सच्चे बन पाएँ॥
सूरज हमको सीख सिखाता, जग को निरंतरता देना।
चंदा कहता मृदु भावों से, सबको शीतलता देना॥
नदियाँ कहतीं, बहते रहना, सबके हित में जीवन हो।
पेड़ सिखाते, फल,छाया देना, औरों के हित अर्पण हो॥
आओ मिलकर हम संकल्पित, प्रकृति सुरक्षा करेंगे।
पेड़ लगाएँ, जल बचाएँ, जग में नया रंग भरेंगे॥
हरियाली का दीप जलाकर, सृष्टि को महकाएँगे।
स्वच्छ, सुंदर, हरी धरा को, मिलकर और सजाएँगे॥
सुरेश कुमार गौरव
‘प्रधानाध्यापक’
उ. म. वि. रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)