ठंढ़ है प्रचंड
डस रहा बन भुजंग।
बह रही सर्द हवा
कांप रही है धरा।
छाया घना कोहरा
बह रही पछुआ हवा।
रवि की किरण देखने
तरस रहा है नयन।
बदन में लिपट रहे कंबल
अनल दे रहा संबल।
कप कपा रहा बदन
पहर दो पहर क्या
अनेकों पहर
चल रही शीतलहर
थरथरा रहा बदन
आ गया प्रचंड ठंड।
ब्यूटी कुमारी
बछवाड़ा, बेगूसराय
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