प्रभाती पुष्प- जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

Jainendra

मनहरण घनाक्षरी
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लाखों मनुहार करें,
कितना भी प्यार करें,
पिंजरे में बंद पक्षी
खुश नहीं दिखता ।

समय प्रभात रहे,
दिन याकि रात रहे,
हमें जाग जाने पर
चोर नहीं टिकता।

कितना जतन करें,
देवों को नमन करें,
मथने से नहीं देता
तेल कभी सिकता।

सागर हैं बड़े – बड़े,
जल स्रोत भरे पड़े,
बोतल में बंद कर
पानी आज बिकता।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना

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