फिर देख बहारें होली की – संजय कुमार

 जब जोर शीत का ढीला हो
 मादकता हो उष्ण हवा में
 प्रकृति में रंग बिखरते हों
 मृदंग का खनक लुभाता हो
 ढोलक का शोर बुलाता हो
 फिर देख बहारें होली की।

 सरसों फूले पीले-पीले
 तीसी के फूल खिले नीले
 आम्र मंजरी भी खिले खिले
 कोयल की तान नशा घोले
 प्रकृति का रंग लुभाता हो
 फिर देख बहारें होली की।

 कण-कण यौवन बिखराये हुए
 ऋतुराज वसंत का दस्तक हो
 वृक्ष सेमल फूले हो,लाल-लाल
 भँवरें करते उसका रसपान
 सुगंध पवन की करे सवारी 
 दिल फूले देख बहारों का
 फिर देख बहारें होली की।

 वस्त्र नए हों, या फटे-फटे
 पर रंग की छींटे नये-नये
 ख़ुम का प्यास जब बढ़ता जाय
 और, महबूब इसे खूब छकता जाय
 छिड़ जाये तान फिर गीतों का
 फिर देख बहारें होली की।

 मजलिस हो सब यारों का
 पकवानों की तश्तरियाँ हो
 खुशी खाने की नहीं, खिलाने की
 ठंडई भी खूब पिलाने की
 आँखों का रंग गुलाबी हो
 गालों पर रंगें लाली हो
 चहुँओर छटा जब ऐसी हो
 फिर देख बहारें होली की।

संजय कुमार
जिला शिक्षा पदाधिकारी
अररिया, बिहार

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