बच्चे होते हैं नादान
रहती चेहरे पर मुस्कान,
तुरंत लड़ाई तुरंत ही मेल
बचपन का यही है खेल ।
बच्चे के मन होते चंचल
चंचलता इसकी पहचान,
बन नटखट वो चलते फिरते
करते रहते हैं परेशान ।
अपनी जिद पर अड़ा रहता है
जिद पूरी हो डटा रहता है,
मान मन्नोवल का यह खेल
चलती रहती है यह रेल ।
मम्मी के दुलारे हैं
पापा के भी प्यारे हैं,
उनकी बातों का बुरा न मानो
सबके आँखों के तारे हैं ।
छोड़ो अपना ये नटखट पन
समझो बात करो कुछ काम,
उम्र हो गई अब पढ़ने की
करो पढ़ाई होगा नाम ।
विद्यालय अब जाने लगे हैं
समझ गया वो अपना काम,
बचपन का यह खेल निराला
परिवार का वह राजदुलारा ।
भवानंद सिंह
UHS मधुलता
अररिया बिहार
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Saandar rachna ke liye aap ko dhanyabad.
बच्चों के मनोभावों को उद्धृत करती अत्यंत ही सुंदर रचना। हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹
Mind-blowing sir
Bahut sundar rachna.
बहुत बढिया प्रयास।