बसंत बहार- जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

Jainendra

घनाक्षरी छंद में


(१)
बागों में बहार आई, मन में उमंग छाई ,
भांति-भांति फूल देख,
छूटे फुलझड़ियां।

जहां भी नज़र जाए, सुन्दर सुमन भाए,
दूर-दूर तक लगी,
पुष्पों की है लड़ियां।

मन नहीं भरे आज, प्रकृति की देख साज,
बीत जाती तुरंत ही,
काल, क्षण, घड़ियां।

रश्मियों की छाई घटा, दिखे मनोहारी छटा,
मही पर चल आई,
गगन से परियां।
( २)
सूरज की आभा देख, पेड़- पौधे हँस पड़े,
पक्षियाँ चहक उठे,
खुश हुईं वादियांँ।

कली मकरंद चूये, पवन भी मंद बहे,
आज निज कोर लग,
बहतीं हैं नदियाँ।

खिल गया गुलशन, गीत गाता मधुवन,
भौंरे संग होगी जैसे,
तितली की शादियां।

धरती भी बनी रानी, लहंगा पहन धानी,
फूलों की चुनर ओढ़े,
लगे शहजादियाँ।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना

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