बड़े चीत्कार से पावन मन
कहता कोई रंज नहीं ,
फिर क्यों ऐसी स्थिति आ गई?
जब कोई प्रपंच नहीं ।
दिल-दिमाग के न्यायालय में
जब भी चर्चा लाओगे ,
हृदय तटस्थ हो खुद को ही
दोषी तुम तो पाओगे ।
जब-जब दुर्दिन याद करोगे
रोओगे, बहुत पछताओगे।
रोओगे, बहुत पछताओगे।
तुम सब दर्पण
देखते होगे ,
बोलो खुद को ,
कैसे माफ करोगे?
झिंझोड जाएगा तन-मन को
जहाँ कहीं भी याद करोगे ।
भावुक होगा दिल भी तुम्हारा 2
मोती आंखों से,
तुम भी गिराओगे ।
जब-जब दुर्दिन याद करोगे,
रोओगे, बहुत पछताओगे ।। 2
आखिर क्या मिला?
क्या मिलना था?
जब अपनों से
अपने को ही तौलना था।
जब जय-विजय की बात नहीं थी,
फिर जयचंद क्यों कहलाओगे ?
क्या मिशाल के लायक तुम होगे?
जो किसी और को नहीं होना था?
रूक कर जब तुम सोचोगे,
रखकर हाथ सिरे तब,बैठ जाओगे।
जब-जब दुर्दिन याद करोगे
रोओगे, बहुत पछताओगे ।। 2
आहत हो मन कटुवाणी से
भीतर तक छलनी हो जाता है।
फिर प्रार्थी बन मधुर वचनों का
कहां मोल रह जाता है ।।
नदियों की बहती धारा में
धो चुका हाथ हर कोई है।
कोई बोल,
कोई चुप हो सुनकर।
कर चुका अपराध ,
हर कोई है ।।
जब लहरें उठेंगी अमर्यादित,
चीत्कार नहीं फिर कर पाओगे।
जब -जब दुर्दिन याद करोगे,
रोओगे, बहुत पछताओगे ।। 2
खुद से जब-सब बात करोगे
विह्वल हो फफक जाओगे ।
टिस करेगी कसक हृदय में,2
जब कर्म कुल्हाड़ी सम ये,
जब कर्म कुल्हाड़ी सम ये,
खुदी के पैर पर पाओगे ।।
जब-जब दुर्दिन याद करोगे,
रोओगे, बहुत पछताओगे ।।
गौतम भारती