बालिका भ्रूणहत्या व्यथा-सुरेश कुमार गौरव

Suresh kumar gaurav

एक विचारणीय प्रश्न क्योंकि बालिका दिवस का मतलब समझना होगा।
बालिका भ्रूणहत्या एक गंभीर समस्या है। इस पर रोक के प्रावधान भी हैं। पुरुष-स्त्री लिंगानुपात में असमानताएं देखे जा सकते हैं। इसी पर केन्द्रित है मेरी कविता :

मां के गर्भ में जैसे ही स्पंदन हुआ
बालिका भ्रूण ने कहा-
मां! मुझे कोख में लेना जरुर
अभी तो मैं आपके गर्भ में ही पलूंगी
जब आपके गर्भ से निकलूंगी
मुझे सुलाना,नहलाना और पुचकारना
मुझे तो आपके गर्भ में भी
सुखद स्नेहिल आनंद मिलती है
आपकी गोद में ही जीना चाहती हूं।

मां! मुझे पापा से जरुर मिलाना
दादा-दादी की गोद का खिलौना बनाना
मैं आपकी गोद में ही पल बढ़कर
जीवन के सभी ऋतुएं देखना चाहती हूं।
भाई का जीवन स्नेह,बहन का सामिप्य
परिजनों के अभिन्न अंग बनना चाहती हूं।

मां!मेरा हरण करने , हत्या करने न देना
मैं भी भाई के जैसा पढ़ना चाहती हूं।
संसार की बुलंदियों को छूकर
अपनी शक्ति दिखलाना चाहती हूं।

मां! मुझे संसार में जरुर आने देना
अपने घर की लक्ष्मी बनकर
कुल को तारकर बतलाना चाहती हूं।
अपनी सखी सहेलियों के संग
बचपन की अठखेलियां खेल
आजाद तितलियों सा उड़ना चाहती हूं।

मां ! मुझे ममता की छांव देना जरुर
पढ़-लिखकर समाज में पहचान बन
पिता का नाम रौशन करना चाहती हूं।

सुरेश कुमार गौरव,शिक्षक ,पटना (बिहार)
स्वरचित और मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित

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