बाल सपने – सार्द्ध मनोरम छंद
पाँव में पाजेब मनहर बाँध अपने।
नाचते हैं श्याम बनकर बाल सपने।।
देखकर नंगे कदम के दाँव प्यारे।
झूमता है मन मयूरा भी हमारे।।
दौड़कर है पास आते जब कभी वें।
देखता जाता यही कैसे चलें वें।।
पाँव छोटे गीत गाते आ रहें हैं।
और सारे चैन मेरे जा रहे हैं।।
यों नुपुर स्वर कान में रस घोलते हैं।
हृदय के सब द्वार जैसे खोलते हैं।।
छोड़ दूँ कैसे भला इस दृश्य को मैं।
मोह में बाँधे हुए क्षण वृष्य को मैं।।
आज होती है अलग अनुभूतियाँ कुछ।
याद आती है हमें अब सूक्तियाँ कुछ।।
हैं नजारा भाव जैसा हो हृदय में।
श्याम मिलते भी सहज सारे जहां में।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
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