राजगृह की पावन वादियाँ, ऋषियों की तपभूमि,
गृद्धकूट की चोटी बोले, बुद्ध की अमिट प्रतीति।
सप्तधाराएँ बहती जातीं, गूंजे जहां ज्ञान-विचार,
हे मगध! तू गौरव-गाथा, तू भारत का उद्गार।
बोधगया में पीपल तले, जब बुद्ध ध्यान लगाते,
मोक्ष-पथ की ज्योति जगाकर, धर्मचक्र चलाते।
संधि, समर्पण, करुणा, शांति, सारा जग सिखलाया,
बिहार की माटी में ही, विश्व को ज्ञान दीप दिखाया।
नालंदा की वीथियाँ कहतीं, तक्षशिला संग गाथा,
जहाँ ज्ञान का अमृत बहता, खोजे नूतन मुकुटमाथा।
चाणक्य, आर्यभट्ट, नागार्जुन मगध के शिखर बोल,
शब्दों में विज्ञान खिले, सत्य बने यहां अनमोल।
वैशाली की गाथा सुनो, गणराज्य का प्रथम पुकार,
लिच्छवी की वह संस्कृति थी, जो बन गई आधार।
मातृत्व की भूमि मिथिला, सीता की वो छाँव,
जहाँ विदेहराज जनक ने, दिए दर्शन और भाव।
गया की घाटी साधकों की, विष्णुपद की शान,
पिंडदान में बसी श्रद्धा, मोक्ष की वो पहचान।
विक्रमशिला की तटवर्ती छाया, विद्या-तीर्थ महान,
जहाँ धर्मपाल के सपनों ने रचा ज्ञान-गुलदान।
तारेगना का खगोलीय दीप, आर्यभट्ट की दृष्टि,
गिनती, ग्रह, नक्षत्रों में खोजी चिर सृष्टि।
सोनपुर के मेले में, अनूठी परंपरा की बूँदें,
जहाँ लोक-धारा बहती, संस्कृति की गूँजें।
पटना की राजधानी, अत्यंत गौरव गाथा भरी,
गोलघर, सचिवालय, संग्रहालय की क्यारी।
हाईकोर्ट, विश्वविद्यालय, शहीद स्थल की बात,
इतिहास की गलियों में बसी हर जन की सौगात।
शेरशाह का सासाराम, महलों की वो रेखा,
दरभंगा की गूंज अनोखी, राजाओं की लेखा।
भागलपुर से झारखंड तक, हर कोना मुस्काए,
जब बिहार की गौरव गाथा, फिर से गीत सुनाए।
“हे बिहार! तू संस्कृति का अमूल्य भंडार,
तेरे हर कण में बसी, भारत की पहचान अपार।
ज्ञान, धर्म, शौर्य, करुणा – तुझसे ही संचार,
तू ही राष्ट्र की आत्मा है, तू ही भारत का आधार!”

@सुरेश कुमार गौरव, प्रधानाध्यापक, उ.म.वि.रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)
