बुद्धत्व की प्राप्ति – अमरनाथ त्रिवेदी

Amarnath Trivedi

 

बड़ा   लक्ष्य   जिन्हें     पाना   हो ,

छोटी-छोटी बातों पर भी  ध्यान  दिया करते ।

 

जिन्हें  अपने  पर  विजय  पाना   हो ,

वे कभी  विलासी बातों में  नहीं रमते ।।

 

सिद्धार्थ राजा के  राज  दुलारे  थे ,

वहाँ भौतिक   सुख   भी   सारे  थे ।

 

कोई चिंता नहीं किसी बात की थी ,

वे  पिता  के नयनों  के  भी  तारे थे ।।

 

प्रासाद में उनका  मन बहलाने   को ,

कई   सुंदरी   युवतियाँ    प्यारी   थीं ।

 

अपनी  पत्नी सुंदरी  यशोधरा  भी ,

वह  सहज   सौम्य   सुकुमारी   थी ।।

 

एक बार   वृद्ध  आदमी   को   देखा ,

उसका बुखार से   तन  था काँप रहा ।

 

उसके  वसन  थे आधे   फटे  हुए ,

वह किसी तरह तन को झाँप रहा ।।

 

सिद्धार्थ ने कभी ऐसा अभिशाप  न देखा था ।

इस  दुःख  दरिद्रता  को  कभी न लेखा था ।।

 

सो   मन   में  उठा  ज्वार   प्रवर।

वह पहुँच गया   मस्तिष्क शिखर ।।

 

उन्हें अब  एक ही धुन लगी रहती ।

क्यों   दुनिया   शोकग्रस्त   रहती ?

 

जन्म , जरा , मरण के चक्कर से ,

लोग     पार  क्यों  न   पाते   हैं ?

 

मोह  माया  की  इस  नगरी   में ,

वे उलझ- उलझ क्यों   रह जाते हैं ?

 

करुणा की  इस  देदीप्य  मूर्त्ति    ने ,

एक दिन सचमुच  ही गृह त्याग दिया ।

 

फिर   नित्य    भिक्षाटन     से    ही  ,

उदर  पोषण  भी  अपना  शुरू   किया ।।

 

अब एक ही लक्ष्य  था, उनके  जीवन का ।

केवल  आत्म- तत्व   के   शोधन    का ।।

 

घूमते- घूमते   वे    गया    आए ,

आत्म- तत्त्व  के  लिए  यहीं ध्याए।

 

सिद्धार्थ यहीं बुद्धत्व को प्राप्त हुए ,

जीवन के असली मर्म से आप्त हुए ।।

 

उनके उपदेश  में अहिंसा व करुणा की वाणी है ,

इच्छा और तृष्णा  ही दुःख की बड़ी  निशानी है ।

 

आज हम सब भी उनके उपदेशों पर चलकर ,

जीवन को सदवृति, सन्मार्ग की ओर मोड़  चलें ।

 

यह जीवन मानवीय मूल्यों को जीवित रखने का ,

हम   सब   कदम   बढ़ाए   उस    ओर   चलें ।

 

अमरनाथ त्रिवेदी

पूर्व प्रधानाध्यापक

उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा

प्रखंड बंदरा ,

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