बड़ा लक्ष्य जिन्हें पाना हो ,
छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान दिया करते ।
जिन्हें अपने पर विजय पाना हो ,
वे कभी विलासी बातों में नहीं रमते ।।
सिद्धार्थ राजा के राज दुलारे थे ,
वहाँ भौतिक सुख भी सारे थे ।
कोई चिंता नहीं किसी बात की थी ,
वे पिता के नयनों के भी तारे थे ।।
प्रासाद में उनका मन बहलाने को ,
कई सुंदरी युवतियाँ प्यारी थीं ।
अपनी पत्नी सुंदरी यशोधरा भी ,
वह सहज सौम्य सुकुमारी थी ।।
एक बार वृद्ध आदमी को देखा ,
उसका बुखार से तन था काँप रहा ।
उसके वसन थे आधे फटे हुए ,
वह किसी तरह तन को झाँप रहा ।।
सिद्धार्थ ने कभी ऐसा अभिशाप न देखा था ।
इस दुःख दरिद्रता को कभी न लेखा था ।।
सो मन में उठा ज्वार प्रवर।
वह पहुँच गया मस्तिष्क शिखर ।।
उन्हें अब एक ही धुन लगी रहती ।
क्यों दुनिया शोकग्रस्त रहती ?
जन्म , जरा , मरण के चक्कर से ,
लोग पार क्यों न पाते हैं ?
मोह माया की इस नगरी में ,
वे उलझ- उलझ क्यों रह जाते हैं ?
करुणा की इस देदीप्य मूर्त्ति ने ,
एक दिन सचमुच ही गृह त्याग दिया ।
फिर नित्य भिक्षाटन से ही ,
उदर पोषण भी अपना शुरू किया ।।
अब एक ही लक्ष्य था, उनके जीवन का ।
केवल आत्म- तत्व के शोधन का ।।
घूमते- घूमते वे गया आए ,
आत्म- तत्त्व के लिए यहीं ध्याए।
सिद्धार्थ यहीं बुद्धत्व को प्राप्त हुए ,
जीवन के असली मर्म से आप्त हुए ।।
उनके उपदेश में अहिंसा व करुणा की वाणी है ,
इच्छा और तृष्णा ही दुःख की बड़ी निशानी है ।
आज हम सब भी उनके उपदेशों पर चलकर ,
जीवन को सदवृति, सन्मार्ग की ओर मोड़ चलें ।
यह जीवन मानवीय मूल्यों को जीवित रखने का ,
हम सब कदम बढ़ाए उस ओर चलें ।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड बंदरा ,
