मनहरण घनाक्षरी छंद
पढ़ लिख कर बेटी,
पैरों पर खड़ी होती,
माता-पिता को भी होती, आसानी सगाई में।
विचार बदलकर,
घर से निकल गई,
चूड़ी की जगह ले ली, कलम कलाई में।
घर की उठाती भार,
चलाती है परिवार,
आ रही है आगे आज, अव्वल पढ़ाई में।
जमीं हो या आसमान,
हथेली पे लेके जान,
सीमा पर खड़ी आज़, देश की भलाई में।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’म.वि. बख्तियारपुर पटना
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