बेटियाँ बनकर रहमत जिंदगी में आती,
गौरैया सी आँगन में फुदक फुदक कर,
घर आँगन की देखो शोभा है बढाती,
जोड़ती है दो परिवारों को अपने प्रेम से
कुछ इस तरह से वह रौनक बढाती।
दिल से सोचो तो वह नही हैं कभी पराई,
मुश्किल में वह ढाल बनकर हैं सदा आईं,
कुल की मर्यादा को दिल से निभाती हैं,
घर बाहर दोनों की जिम्मेदारी उन्होंने निभाई,
कुछ इस तरह से वह मुस्कान सजाती हैं।
घर बाहर दोनों जगह अपना परचम लहराये ,
डॉक्टर इंजीनियर बनकर हैं पहचान बनाये,
घर की गृहिणी वह गृह कार्यो में दक्ष हैं,
परिवार की जरूरत को वह पूरी कर जाए,
कुछ इस तरह से इतिहास रचाती हैं।
बेटियों जो बस इतना समझ पाए,
अपने जैसा वह स्वयं को बनाये,
नही करें तुलना अगर वह किसी से,
अपनी पहचान को विशेष वह कर जाएं।
रूचिका
रा.उ.म.वि. तेनुआ,गुठनी सिवान बिहार